Saturday, 27 September 2014

सरोकार संवाद- "डॉलर तले रुपैया: कौन ज़िम्मेदार"


22 सितम्बर 2013,
उदारीकरण के कारण ही अर्थव्यव्स्था में संकट आया है और रुपया रसातल में है लेकिन उसी को संकटमोचक बना के पेश किया जा रहा है। यह धोखाधड़ी है। यह बातें प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर कमल नयन काबरा ने सरोकार संस्था की ओर से प्रोफेसर जेके मेहता और जस्टिस रामभूषण मेहरोत्रा की स्मृति में ‘डालर तले रुपया : कौन जिम्मेदार’ विषय पर रविवार को निराला सभागार में आयोजित गोष्ठी में कही।
काबरा ने रुपये की इस हालत के लिए केंद्र सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया। उनका कहना था कि आम आदमी के खर्च में वस्तुओं का अनुपात 70 फीसदी होता है। लेकिन अपने देश में इन वस्तुओं का उत्पादन न करके विदेशों से मंगाया जा रहा है। इस नीति को बदलने की जरूरत है। वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी का कहना था कि डॉलर के मुकाबले रुपया का कम होना आर्थिक नहीं बल्कि, राजनीतिक मामला है। रुपया का अवमूल्यन रोकना न सरकार की प्राथमिकता है न आरबीआई की। इसके दो पक्ष हैं। एक पक्ष रुपये के अवमूल्यन का स्वागत कर रहा है तो दूसरा पक्ष इस विषय को नहीं समझ पा रहा है। सरकार कई तरह की नीतियां बना रही है लेकिन इसको लेकर गंभीर नहीं है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के मनमोहन कृष्ण ने प्रोफेसर जेके मेहता को याद करते हुए कहा कि मनुष्य को क्रिया-कर्म विहिन नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे अपनी इच्छाओं से मुक्त होना चाहिए। केके पांडेय ने कहा कि जस्टिस रामभूषण मेहरोत्रा वामपंथी तथा सेकुलर के बीच सेतु की भांति थे। इस मौके पर प्रोफेसर लाल बहादुर वर्मा ने युवा संवाद प्रकाशन की पुस्तक वैकल्पिक आर्थिक सर्वे पुस्तक का विमोचन किया। गोष्ठी के दौरान डॉ.अनिल पुष्कर ने उदारनीति पर कविता ‘कड़वे सच की कतरन’ पढ़ी। गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ.संतोष भदौरिया ने की। संचालन संध्या नवोदिता ने किया। असरार गांधी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में अमर उजाला के संपादक अरुण आदित्य सिंह, प्रोफेसर अनीता गोपेश, उर्मिला जैन, धनंजय चोपड़ा, स्वाति जैन, जीपी मिश्रा, अनिल रंजन भौमिक, रामजी राय आदि मौजूद रहे।















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